अपने बच्चों को समझने का प्रयास करें

मातपिता कैसे अपने बच्चों से अच्छा संवाद स्थापित कर सकते हैं?


आर्ट ऑफ लिविंग एक छोटी कार्यशाला इसी प्रश्न का संपूर्ण समाधान है, जो बच्चों पर, उनके व्यवहार पर और उनको प्रभावित करने वाले मुद्दों पर प्रकाश डालती है। बच्चो को समझने और  उनको उत्तर देने का तरीका, बच्चों का पालन दृढ़ता से, निष्पक्षता से, और मस्ती के साथ कैसे करे, यह सब कार्यशाला में सहजता से सीखें।


'अपने बच्चों को जानें' कार्यशाला, सभी मातपिता, जिनके बच्चे ८-१३ वर्ष आयुवर्ग के है उनके के लिए उपयोगी है।


एक बच्चे का दृष्टिकोण एक वयस्क के दृष्टिकोण से बहुत भिन्न होता है और आश्चर्य, विस्मय, उत्साह, भोलापन, शरारत और सहजता से भरा होता है। जीवन के प्रारंभिक वर्षों में मातपिता और शिक्षक बच्चों के सांगोपन और मनोविश्व का मुख्य भाग होते हैं। फिर भी बच्चे और वयस्क के परिप्रेक्ष्य (देखने के नज़रिए में) में एक मूलभूत अंतर है। समय के साथ बच्चा अपने वातावरण को ज़्यादा से ज़्यादा अपनाने लगता है और अपने निरीक्षणों से प्राप्त विचारों को व्यक्त करना प्रारंभ करता है।


सांस्कृतिक ग़लतफहमी के कारण, बच्चे अक्सर यह महसूस करते है कि उन्हे कोई समझता नहीं है और मातपिता बच्चों के कृत्यों पर निराश होते हैं। यदि यह सांस्कृतिक अलगाव गहराता है तो मातपिता और बच्चों के बीच के संबंधों में गिरावट आती है जो की परिवार के सदस्यों के बीच की निकटता में कमी लाती है।


यह पारिवारिक जीवन को प्रभावशाली तरीके से सुधारती है।  बच्चों के व्यवहार के मूल कारणों को जाना जाता है और मातपिता इस ज्ञान से बच्चों के सर्वांगीण विकास में सहयोगी होते हैं। जैसे जैसे बच्चे किशोर और वयस्क होते जाते हैं वैसे ये सिखाई गयी बातें संबंधों की मधुरता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण साबित होती हैं।